abpunch posted: " सवेरे जब दफ्तर पहुंचा तब कमीज़ पर दोनों आस्तीन मौजूद थीं, शाम को लौटते तक एक गायब हो चुकी थी, घर पहुंचा तो माँ ने टोका बरखुरदार, कहाँ भूल आए अपना ज़मीर? सहसा मैं संभला – कोई और क्यूँ नहीं कुछ बोला? कौतूहल से ताक तो " Abhinav Pancholi
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