| Author Shivam Dwivedi Oct 31 | एक अदृश्य पवन सा था मैं, फिर एक अणु रूप आकार हुआ। कुछ और प्रगति हुई शायद, फिर एक गर्भ में मैं प्रविष्ट हुआ।। अभी भी बहुत छोटा ही था, सामान्य आखों से दिखता भी नहीं। फिर ऊर्जा मिलने लगी मुझे, फिर ऊर्जा बढ़ने लगी मेरी।। ऊर्जा मेरी भीतर से बाहर की ओर भी फैलने लगी, फिर मैंने स्वयं को एक शरीर बनते हुए पाया। सो शरीर बना, इंद्रियां बनी, फिर मैंने स्वयं को जन्म लेते पाया।। पर मूल स्रोत जो है मेरा, वह अब भी मेरे भीतर है। वह मैं अदृश्य पवन सा, वह मैं इक अदृश्य पवन सा।। I'm Awesome! | | | | You can also reply to this email to leave a comment. | | | | |
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