shivamprasad posted: " ख़यालों के सतह पर ख़यालों के इमारतें बनाना अच्छा लगता है,कुछ अधूरे कहानियों को ख़यालों में दोहराना अच्छा लगता है।सबकुछ समझ आ जाए, तो रहस्य के वलवले का क्या होगा?कुछ राग ज़िंदगी के ,नासमझी में ही गुनगुनाना अच्छा लगता है।ये धीमी-धीमी-सी बहती बाद-ए-सबा और फ़"
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