चर्चा-ए-आम है ज़हानत का तेरी
मैंने देखी है शरारत आँखों में तेरी

यूँ तो तूने न किया इज़हार-ए-वफ़ा
मैंने देखी है इज़ाजत आँखों में तेरी

अब तक क्यों न थामी कलाई मेरी
मैंने देखी है शिकायत आँखों में तेरी

लग चुका है तुझे भी इश्क़ का रोग
मैंने देखी है हरारत आँखों में तेरी

है आज मेरे लुटने की रात "अमित"
मैंने देखी है क़यामत आँखों में तेरी


This free site is ad-supported. Learn more